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चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म मद्रास के थोरपल्ली गाव में 10 दिसंबर 1887 को हुआ था। राजगोपालचारी राजाजी के नाम से मशहूर थे।राजाजी तत्कालीन सलेम जनपद के थोरापल्ली नामक एक छोटे से गांव में एक तमिल ब्राह्मण परिवार (श्री वैष्णव) में जन्मे थे। आजकल थोरापली कृष्णागिरि जनपद में है। उनकी आरम्भिक शिक्षा होसूर में हुई। कालेज की शिक्षा मद्रास (चेन्नई) एवं बंगलुरू में हुई।वर्ष 1916 में ‘उन्होंने तमिल साइंटिफिक टर्म्स सोसाइटी’ का गठन किया, यह एक ऐसा संगठन जिसने रसायन विज्ञान, भौतिकी, गणित, खगोल विज्ञान और जीव विज्ञान के वैज्ञानिक शब्दों का सरल तमिल शब्दों में अनुवाद किया।
राजनैतिक सफर:-
आज़ादी से पहले:- वह भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस में शामिल हुए और वहाँ उन्होंने कानूनी सलाहकार के रूप में काम किया।
वर्ष 1917 में उन्होंने देशद्रोह के आरोपों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्त्ता- पी. वरदराजुलु नायडू का बचाव किया।
उन्हें वर्ष 1937 में मद्रास प्रेसीडेंसी के पहले प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया था।
वर्ष 1939 में राजगोपालाचारी ने अस्पृश्यता और जातिगत पूर्वाग्रह को खत्म करने के लिये एक कदम उठाया और मद्रास मंदिर प्रवेश प्राधिकरण और क्षतिपूर्ति अधिनियम जारी किया।
मद्रास मंदिर प्रवेश प्राधिकरण के बाद दलितों को मंदिरों के अंदर प्रवेश करने की अनुमति दी गई।
विभाजन के समय उन्हें पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था।
वर्ष 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन की अनुपस्थिति के दौरान अंतिम ब्रिटिश वायसराय और स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी को अस्थायी रूप से पद संभालने के लिये चुना गया था।
इसलिये वह भारत के अंतिम गवर्नर जनरल थे।
स्वतंत्रता के बाद:-
राजगोपालाचारी ने अप्रैल 1952 में मद्रास के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला।
मद्रास के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने शिक्षा प्रणाली में सुधार और समाज में बदलाव लाने में सक्रिय रूप से भाग लिया।
उन्होंने तमिल स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य भाषा भी बनाया।
उनके इस कदम से उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसके बाद राजगोपालाचारी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
वह सामाजिक रूढ़िवादी थे लेकिन मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था का समर्थन करते थे।
वह वर्ण व्यवस्था को समाज में पुनः लाना चाहते थे।
वह समाज के लिये धर्म के महत्त्व में विश्वास करते थे।
वर्ष 1950 में सरदार पटेल की मृत्यु के बाद राजगोपालाचारी को गृह मंत्री बनाया गया था।
वर्ष 1959 में, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:
असहयोग आंदोलन:वह महात्मा गांधी से पहली बार वर्ष 1919 में मद्रास (अब चेन्नई) में मिले और गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया।
वर्ष 1920 में उन्हें वेल्लोर में दो साल की जेल भी हुई थी।
जेल से रिहा होने के बाद, उन्होंने गांधी के हिंदू-मुस्लिम सद्भाव और अस्पृश्यता के उन्मूलन के सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिये अपना आश्रम खोला।
वे खादी के भी समर्थक थे।
वायकोम सत्याग्रह: वे अस्पृश्यता के खिलाफ वायकोम सत्याग्रह आंदोलन (Vaikom Satyagraha Movement) में भी शामिल थे।
दांडी मार्च: वर्ष 1930 में जब गांधी जी ने नमक कानून तोड़ने के लिये दांडी मार्च का नेतृत्व किया, तो राजगोपालाचारी ने मद्रास प्रेसीडेंसी दांडी मार्च के समर्थन में वेदारण्यम में एक मार्च निकाला।
वह गांधी के अखबार यंग इंडिया के संपादक भी बने।
भारत छोड़ो आंदोलन: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, राजगोपालाचारी ने गांधी का विरोध किया।
उनका विचार था कि अंग्रेज अंततः देश छोड़ने ही वाले थे तो एक और सत्याग्रह शुरू करना एक अच्छा निर्णय नहीं था।
साहित्यिक योगदान:-
इस पुस्तक ने 1958 में तमिल भाषा में साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता।
उन्होंने रामायण का तमिल अनुवाद लिखा, जिसे बाद में चक्रवर्ती थिरुमगन के रूप में प्रकाशित किया गया।
मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री (Chief Minister of Madras State):-
सन 1952 में मद्रास में चुनाव के दौरान किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं हुआ, जिसके चलते मद्रास के राज्यपाल प्रकाश जी ने राजगोपालाचारी जी को मद्रास के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया. राजाजी ने कुछ विपक्षी सदस्यों को कांग्रेस में शामिल होने के लिए आग्रह किया जिससे वे बहुमत साबित करने में कामयाब रहे. उस समय आंध्र को एक अलग राज्य बनाने के लिए एक शक्तिशाली आंदोलन शुरू किया गया था.
सन 1953 में आंध्र को एक अलग राज्य बना दिया गया. इसके अलावा राजगोपालाचारी जी के कार्यकाल में कुछ और महत्वपूर्ण निर्णय लिए गये, जिससे मद्रास की अर्थव्यवस्था और सामाज दोनों प्रभावित हुये. उन दौरान चीनी राशन समाप्त हो गया, मद्रास की शिक्षा प्रणाली में संशोधन किया गया था. सन 1954 में राजगोपालाचारी जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था, जिसके चलते उन्होंने सन 1954 में अपने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया.
कांग्रेस पार्टी का विभाजन (Split From Congress)
जनवरी सन 1957 में राजगोपालाचारी जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया, और पार्टी के कुछ अन्य विरोधियों के साथ मिलकर कांग्रेस सुधार समिति की स्थापना की. इस पार्टी ने सन 1957 के विधानसभा चुनाव में चुनाव लड़ा. मद्रास में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरते हुए राजाजी ने 13 सीटें जीतीं.
स्वतंत्रता पार्टी की स्थापना:-
सन 1959 में राजगोपालाचारी जी ने स्वतंत्रता पार्टी का गठन किया. पार्टी समानता के लिए खड़ी थी, और निजी क्षेत्र पर सरकारी नियंत्रण का विरोध करती थी.
सन 1967 में मद्रास विधानसभा चुनावों में राजाजी ने डीएमके, स्वतंत्रता पार्टी और फॉरवर्ड ब्लॉक के बीच गठबंधन कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के खिलाफ एकजुट होकर विपक्ष को तैयार करने में सक्षम हुए. इस तरह कांग्रेस पार्टी चुनाव में हार गई और डीएमके के नेतृत्व के साथ गठबंधन सत्ता में आया.
सन 1967 के आम चुनावों में भी 45 लोकसभा सीटें जीतकर स्वतंत्रता पार्टी एकमात्र सबसे बड़ी विपक्षी दल के रूप में उभरी. इसके बाद सन 1971 में आयोजित आम चुनावों में स्वतंत्रता पार्टी की ताकत धीरे – धीरे कम होने लगी, और फिर यह पार्टी पूरी तरह से महत्वहीन हो गई.
द्वितीय विश्व युद्ध में (Second World War):-
द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लेने का विरोध करते हुए राजगोपालाचारी जी ने कांग्रेस के अन्य मंत्रियों के साथ मिलकर अपने प्रीमियर पद से इस्तीफा दे दिया. दरअसल जर्मनी के साथ युद्ध में भारत को शामिल करने के लिए वाइसराय ने घोषणा कर दी और वे इसके सख्त खिलाफ थे.
भारत के रक्षा नियमों के अनुसार, दिसंबर 1940 में राजगोपालाचारी जी को युद्ध में शामिल न होने और इसका विरोध करने के लिए गिरफ्तार भी किया गया था और 1 साल की जेल की सजा भी सुनाई गई थी.
भारत में भारत छोड़ो आंदोलन जोर पकड़ रहा था, किन्तु उस समय जर्मनी के खिलाफ ब्रिटेन के युद्ध पर उनका रुख बदल गया. उन्होंने अंग्रेजों के साथ वार्ता कर वकालत की और भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया. राजगोपालाचारी जी ने यह तर्क दिया कि ब्रिटिश शासन का विरोध वास्तव में उस समय सही नहीं होगा, जब भारत पर संभवतः हमला किया जा सकता था.
निधन :
अपनी वेशभूषा से भी भारतीयता के दर्शन कराने वाले इस महापुरुष का 28 दिसम्बर, 1972 को निधन हो गया।
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