भारत की स्वतंत्रता के भी काफ़ी पहले से देश की ब्रिटिश सरकार के पास भारत में साहित्य की राष्ट्रीय संस्था की स्थापना का प्रस्ताव विचाराधीन था। 1944 में, भारत सरकार ने रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल का यह प्रस्ताव सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया था कि सभी क्षेत्रों में सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय सांस्कृतिक ट्रस्ट का गठन किया जाना चाहिए। ट्रस्ट के अंतर्गत साहित्य अकादेमी सहित तीन अकादेमियाँ थीं। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत की स्वतंत्र सरकार द्वारा प्रस्ताव का अनुसरण करते हुए विस्तृत रूपरेखा तैयार करने के लिए शृंखलाबद्ध बैठकें बुलाई गईं। सर्वसम्मति से तीन राष्ट्रीय अकादेमियों के गठन का निर्णय हुआ, एक साहित्य के लिए दूसरी दृश्यकला तथा तीसरी नृत्य, नाटक एवं संगीत के लिए। लेकिन विचारों में यह मतभेद हुआ कि सरकार को ज़रूरी कदम उठाते हुए अकादेमियों की स्थापना करनी चाहिए अथवा इसे उन व्यक्तियों के लिए ठहरना चाहिए, जो अकादेमियों की स्थापना के लिए आवश्यक नैतिक प्राधिकारी हैं। संघ के शिक्षामंत्री अब्दुल कलाम आज़ाद का विचार था कि ‘‘यदि हमने अकादेमी के लिए नीचे से इसके विकास की प्रतीक्षा की तो शायद यह कभी स्थापित नहीं हो पाएगी।’’ यह महसूस किया गया कि सरकार के पास अकादेमियों के गठन के लिए पहलकदमी के सिवा कोई विकल्प नहीं है। सरकार द्वारा इस प्रक्रिया में किया जाने वाला कार्य परदा उठाने की तरह था। सरकार ने अकादेमियों का गठन किया, लेकिन जब एक बार वे गठित हो गईं, तब वे किसी नियंत्रण में नहीं रहीं और उन्हें स्वायत्त संस्था के रूप में कार्य करने के लिए छोड़ दिया गया। भारत सरकार ने संकल्प सं. एफ-6-4/51 जी 2 (ए) दिनांक दिसंबर 1952 के माध्यम से साहित्य अकादेमी नामक राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था की स्थापना का निर्णय लिया। साहित्य अकादेमी का विधिवत् उद्धाटन भारत सरकार द्वारा 12 मार्च 1954 को किया गया था। भारत सरकार के जिस प्रस्ताव में अकादेमी का यह विधान निरूपित किया गया था, उसमें अकादेमी की यह परिभाषा दी गई है- भारतीय साहित्य के सक्रिय विकास के लिए कार्य करनेवाली एक राष्ट्रीय संस्था, जिसका उद्देश्य उच्च साहित्यिक मानदंड स्थापित करना, भारतीय भाषाओं में साहित्यिक गतिविधियों को समन्वित करना एवं उनका पोषण करना तथा उनके माध्यम से देश की सांस्कृतिक एकता का उन्नयन करना होगा। हालाँकि अकादेमी की स्थापना सरकार द्वारा की गई है, फिर भी यह एक स्वायत्तशासी संस्था के रूप में कार्य करती है। संस्था पंजीकरण अधिनियम 1860 के अंतर्गत इस संस्था का पंजीकरण 7 जनवरी 1956 को किया गया!
साहित्य के मूल में परिवर्तित सामूहिक चित्तवृत्तियों को आधार बनाकर साहित्य की परंपरा का व्यवस्थित अनुशीलन ही साहित्य का इतिहास कहलाता है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, "प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संक्षिप्त प्रतिबिंब होता है।"
जनवरी 1929 में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'हिंदी साहित्य का इतिहास' ग्रंथ लिखा। हिंदी का यह पहला ग्रंथ है।
हिंदी साहित्य के इतिहास को चार भागों में विभाजित किया गया है-
1. आदिकाल (वीरगाथाकाल)- सन 993 से 1918 तक, संवत् 1050 से 1375 तक
2. पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल)- सन् 1318 से 1643 तक, संवत् 1375 से 1700 तक
3. उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल)- सन् 1643 से 1843, संवत् 1700 से 1900 तक
4. आधुनिक काल- सन् 1843 से आज तक, संवत् 1900 से आज तक